Saturday, September 26, 2015

तूफानी मुसहर और उसके परिवार की लगातार लड़ाई के बाद आखिर पुलिस को दर्ज करना ही पडा मुकदमा










मजदूरी मांगने पर मालिक ने जीभ काटा

आज से तीन दिन पहले जब शाम को तूफानी मुसहर और उसके भाई पीवीसीएचआर के दफ्तर में आये तब तूफानी मुंह पर गमछा बांधे हुए था लेकिन बाहर झांकती उसकी आँखों में ढेर सारा खौफ था . पता लगा कि वह जौनपुर जिले के मुगरा बादशाहपुर का निवासी है . लेनिन ने कहा देखिये दबंगों ने इसकी जीभ ही काट ली है . जीभ में दस टाँके लगाये गए हैं . और तो और मारपीट में इसके आगे के लगभग सारे दांत टूट गए हैं . सचमुच यह सुनना भयावह था और घटना का शिकार व्यक्ति ऐन मेरे सामने था .
लेकिन इससे भी अधिक भयानक यह था कि पुलिस ने उसका मामला दर्ज करने से न केवल इंकार कर दिया बल्कि यह धमकी देते हुए वहां से भगा दिया कि भाग जाओ , अगर दुबारा यहाँ आओगे तो उलटे केस में बंद कर दूंगा . इसके बाद पीड़ित ने जिलाधिकारी जौनपुर और पुलिस अधीक्षक जौनपुर के पास लिखित शिकायत की जिसपर उन्होंने एस ओ मुंगरा बादशाहपुर को निर्देशित किया वे उसका एफ आई आर दर्ज करें और मेडिकल कराएँ . लेकिन इस पर भी एस ओ ने एफ आई आर दर्ज नहीं किया . जब मुकदमा नहीं दर्ज हुआ तो सरकारी अस्पताल में न उसे भर्ती किया गया और न ही खून से सनी उसकी जीभ का इलाज किया गया बल्कि कुछ हलकी-फुलकी दवाइयां देकर उसे भगा दिया गया . अपने मुंह से लगातार गिरते खून के साथ तूफानी ने एक प्राइवेट अस्पताल में जाकर इलाज करवाया .
अपने पुराने अनुभवों से लेनिन जानते हैं कि ऐसे तमाम सारे मामले धमकियों , हमलों और लालच के बिना पर दबा दिए जाते हैं और गरीबी और लाचारी के मारे पीड़ित उत्पीड़कों के मनमुताबिक समझौते करने पर मजबूर हो जाते हैं . इसलिए सबसे पहले उसका मेडिकल कराया जाना और आत्मकथन रिकॉर्ड करना जरूरी था . हालाँकि तूफानी पढ़ा-लिखा है और वह अपनी बात अच्छी तरह तरह लिख सकता है लेकिन फ़िलहाल उसमें इतनी ताकत बाकी नहीं थी कि वह कुछ लिख पाता और फिर ऐसे हालात में उससे लिखने की उम्मीद करना ज्यादती भी थी . लिहाज़ा कैमरे के सामने तूफानी खड़ा था और उसका भाई उसके साथ हुई घटना की तफसील रिकॉर्ड करा रहा था .
तूफानी मुसहर वल्द मल्लू मुसहर गाँव गरियाव , थाना मुंगरा बादशाहपुर जिला जौनपुर का रहने वाला है . वह उसी जाति का सदस्य है जिसे बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार महादलित कहते हैं . कहीं कहीं उन्हें आदिवासी भी माना जाता है . गाँव के बाहर झोंपड़ी बनाकर रहने वाले उत्तर प्रदेश के मुसहर अमूमन खेत मज़दूरी , लकड़ी काटकर  और दोना-पत्तल बनाकर अपनी आजीविका चलाते हैं . अभी तक उनमें शिक्षा की बहुत थोड़ी रोशनी आ पाई है . 
तूफानी और उसका भाई भी थोडा बहुत पढ़ पाए लेकिन गरीबी ने उन्हें जल्दी ही खटकर खाने पर मजबूर कर दिया . लिहाज़ा बहुत दिनों तक बेलदारी करते-करते तूफानी एक दिन राजमिस्त्री बन गया और आसपास के इलाकों में मकान बनाकर वह अपनी रोटी कमाने लगा . पिछले दिनों उसी के गाँव गरियाव के निवासी संतोष कुमार शुक्ला उर्फ़ पप्पू ने उससे अपने मकान में पलस्तर लगवाया और कुछ समय बाद मज़दूरी देने का वादा किया लेकिन जब तूफानी ने वादे के मुताबिक अपना बकाया मेहनताना माँगा तो संतोष हीलाहवाली करने लगा .फिर भी अपनी जायज़ बकाया मज़दूरी के लिए तूफानी ने बार-बार तगादा जारी रखा . वह जब भी अपना रुपया मांगता तब-तब संतोष आनाकानी करता . होते-होते एक दिन इसी मसले को लेकर दोनों में कहासुनी हो गई . उस समय संतोष ने तूफानी को धमकाया कि दुबारा पैसा मत मांगना नहीं तो अच्छा नहीं होगा .
अब तूफानी को लगने लगा कि उसका रूपया डूब गया . धमकी और संतोष की आर्थिक और जातीय हैसियत को देखते हुए वह चुप लगा गया और फिर कभी पैसे नहीं मांगे . लेकिन संतोष के मन में यह कुंठा बनी रह गई कि एक मुसहर ने उससे पैसे के लिए कहासुनी कर ली . उसे यह भी लगता कि तूफानी भले चुप रह गया हो लेकिन कभी न कभी तो वह फिर अपना पैसा मांगेगा ही .
पांच सितम्बर 2015 को रात में करीब 9 बजे संतोष तूफानी के घर मोटर सायकिल से आया और कहने लगा कि तूफानी सारी बीती बातें ख़त्म करो . आओ चलो तुमको जन्माष्टमी का मेला दिखाकर लाता हूँ . वापसी में तुम्हारे पैसे भी दे दूंगा . इसपर तूफानी को लगा कि इससे अच्छी क्या बात होगी कि उसकी बकाया मज़दूरी भी मिल जाये और आपसी मनमुटाव भी दूर हो जाये . इसलिए तूफानी बहुत भरोसे के साथ संतोष के साथ चला गया .
रात को एक बजे जन्माष्टमी का मेला देखने के बाद जब तूफानी संतोष की मोटर सायकिल से वापस घर आ रहा था तो रास्ते में नहर की पुलिया के पास संतोष के साथी पुट्टन सरोज और पप्पू सरोज पहले से मौजूद मिले . संतोष ने मोटर सायकिल वहीँ रोक दी . फिर तीनों अचानक तूफानी को जातिसूचक गालियाँ देने लगे . उन्होंने कहा – साले मुसहर तेरी इतनी औकात हो गई है कि तुम हमलोगों से तगादा करने लगे हो . बहुत चलती है तुम्हारी जबान न . आज इसे ही काट देते हैं फिर कभी न चलेगी .इसके बाद तीनों उसे ज़मीन पर गिराकर लात-घूंसों से मारने लगे . फिर पुट्टन और पप्पू ने तूफानी को पकड़ लिया और संतोष ने रिवाल्वर निकालकर धमकाया –अगर चिल्लाये तो जान से मार दूंगा . फिर संतोष ने एक छोटा सा चाकू निकाला और तुफानी की जीभ को बीच से फाड़ दिया . तीनों ने मारकर उसके कई दांत भी तोड़ दिए . जब तूफानी की चीख-पुकार सुनकर जन्माष्टमी का मेला देखकर लौटने वाले कुछ लोग उसे बचाने दौड़े तो तीनों उसे छोड़कर भाग गए लेकिन रिवाल्वर दिखाते हुए धमकाते भी गए कि यदि पुलिस को सूचना दिए तो जान से मार देंगे .

तूफानी के भाई ने बताया कि जब वे लोग और उनकी माँ मुंगरा बादशाहपुर थाने गए तो संतोष वहां पहले से ही मौजूद था और तूफानी को देखते ही गाली देने लगा . वह अपने इलाके का दबंग है और उसका असर यह था कि थाने पर मौजूद पुलिसवाले ने भी तूफानी को भगा दिया . उसका कहना था कि तुम्हें यह चोट गिरने से आई है और यहाँ फर्ज़ी रिपोर्ट लिखाने आये हो . इसी तरह अस्पताल में उसके साथ हुआ . संतोष वहां भी पहले से मौजूद था और उसने उसे गालियाँ दी . जब जौनपुर में उसकी कोई सुनवाई नहीं हुई बल्कि लगातार जान से मार डालने की धमकियाँ मिलती रहीं तो वह वहां से भागने पर मजबूर हुआ . उसी इलाके के एक अधिवक्ता जो पी वी सी एच आर के मॉडल ब्लॉक कोआर्डिनेटर शिव प्रताप चौबे के मित्र हैं , ने यह सूचना पी वी सी एच आर कार्यालय को भिजवाई जिससे तूफानी यहाँ आया .

पांच दिन से पी वी सी एच आर कार्यालय में रहते हुए भी तूफानी का भय कम नहीं हुआ है क्योंकि संतोष शुक्ला न केवल जगह-जगह घूमकर जान से मारने और अगर बच गया तो गुप्तांग काट लेने की धमकी दे रहा है बल्कि वह और मुंगरा बादशाहपुर का दरोगा उसकी माँ पर दबाव बनाकर उसे थाने में लाने को मजबूर कर रहे हैं . यह वही दरोगा है जिसने तूफानी की रिपोर्ट लिखने की जगह उसे भगा दिया था . पी वी सी एच आर कार्यकर्ता द्वारा दरियाफ्त किये जाने पर वह कहता है कि वह झूठ बोलता है कि उसकी जीभ संतोष शुक्ला ने काटी है बल्कि वह सायकिल से गिर गया है . फ़िलहाल तूफानी का इलाज तो चल रहा है लेकिन सरकारी अस्पताल में उसका इलाज न होने से उसका केस कमजोर हो जाने की शंका है जो कि संतोष शुक्ला को साफ बच निकलने का रास्ता बना सकता है . साफ जाहिर होता है कि स्थानीय पुलिस संतोष को बचाने का कुत्सित प्रयास कर रही है . लेकिन आश्चर्य इस बात का है कि पुलिस कप्तान के कहे जाने पर भी स्थानीय पुलिस पीड़ित के प्रति सहानुभूति दिखाने की बजाय उसे धमका रही है . यहाँ तक कि आई जी के कार्यालय से फोन जाने पर दरोगा ने जवाब दिया कि वह यहाँ आया ही नहीं .

उत्तर प्रदेश जैसे जातिवाद ग्रस्त राज्य में किसी सवर्ण दबंग द्वारा किसी दलित के ऊपर अत्याचार किये जाने की यह कोई नई घटना नहीं है लेकिन जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक के यहाँ गुहार करने पर भी पीड़ित की कोई सुनवाई न हो तो इस मामले की संगीनी समझ में आने लगती है कि  उत्पीड़कों और अत्याचारियों के हौसले कितने बुलंद हो चुके हैं . साथ ही इस बात पर भी गौर किया जाना चाहिए कि मज़दूरी मांगने पर किसी दलित मजदूर की जीभ फाड़ डालना और दांत तोडना और इसके बावजूद हर कहीं से उसे गालियाँ देकर भगाना और जान से मारने की धमकी देना इस बात का सबूत है कि दलित उत्पीड़न आज भी लोगों के लिए कितना आसान है . सत्ता चाहे किसी की रही हो दलित हमेशा उत्पीडित किये जाते रहे हैं . मायावती हों या मुलायम या अखिलेश उन्होंने ऐसे लोगों को हमेशा प्राथमिकता दी है जो उनके लिए बाहुबल का उपयोग करते रहे हैं . वे चाहे ब्राह्मण हों या गैर ब्राह्मण . ऐसे में उनके सामने दलित सबसे सॉफ्ट टार्गेट रहे हैं . इस प्रकार सत्ता और दलितों का अंतर्संबंध हमेशा वही नहीं होता जो उपरी तौर पर निर्धारित और परिभाषित किया जाता है .
फिर भी एक छोटा सा सवाल मन में उठ रहा है कि बहुत साधन संपन्न और दबंग दलित से यह उम्मीद की जा सकती है कि वह किसी गैर दलित की जीभ फाड़ दे या दांत तोड़ दे ? क्या इतिहास और वर्तमान अब तक के अनुलोम उत्पीड़न के प्रतिलोम हो जाने के उदाहरण पेश करता है ?
लगता है कि सारी आधुनिकता , राष्ट्रवाद और अन्तर्राष्ट्रवाद , सूचना और टेक्नोलाजी से संपन्न सत्ताएं अपने अस्तित्व के लिए पतनशील जातिवाद और उसके मनोविज्ञान को बड़ी मुसतैदी से बचाए हुए हैं . सारी राजमशीनरी अपने हिसाब से इसी एजेंडे पर काम कर रही हैं . अगर ऐसा न होता तो हज़ारों की संख्या में बलात्कार की शिकार होने वाली महिलाएं शत-प्रतिशत दलित और पिछड़ी जातियों की ही न होतीं . उनमें अच्छी खासी संख्या सवर्ण स्त्रियों की भी होती . बेशक बलात्कार एक घिनौना और अक्षम्य अपराध है . 

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