Sunday, January 05, 2014

मुजफ्फरनगर के दंगा पीड़ितों के राहत शिविर का सच : कराहती मानवता एवं कड़ाके की ठंड में जम जाती मासूमों की मौत पर सियासत का लहू

भारत: उत्तर प्रदेश के मुज्जफरनगर जिले में हुए सांप्रदायिक दंगे के बाद राहत कैम्पों में रह रहे ग़रीब अल्पसंख्यक मुस्लिम शरणार्थियों, महिलाओं को राज्य सरकार द्रारा बेरहमी से बेदखल करने, उनके टेंटों को उखाड़ फेंकने एवं मासूम बच्चों की मौत पर सियासत करने और पीड़ितों के मानवाधिकार का हनन करने के सम्बन्ध में|

मुददे: राज्य सरकार तथा पुलिस प्रशासन द्रारा ग़रीब अल्पसंख्यक शरणार्थियों के साथ सांप्रदायिक दंगे में प्रभावित होने के बावजूद कोई कार्यवाही न करना, पीड़ितों का कोई ठोस पुनर्वास न करना एवं पुलिस द्रारा यातनापूर्ण तरीके से राहत कैम्पों को उखाड़ फेंकना|
5 जनवरी 2014, मुज्जफरनगर (उ0 प्र0) |  

प्रिय साथियों,
 21 दिसंबर 2013 को वायस ऑफ पीपुल्स (VOP) एवं मानवाधिकार जननिगरानी समिति (PVCHR) के संयुक्त तत्वाधान एक कमेटी मुजफ्फरनगर के दंगे के तीन महीने बाद दंगा प्रभावित क्षेत्र का जायजा लेने पहुंचा | हाल ही में दंगे में रह रहे शरणार्थियों के बच्चों की मृत्यु की खबरें मिडिया में लगातार आ रही थीं, जिससे कैम्पों की बदहाल स्थितियों का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता था | किन्तु दंगा प्रभावित क्षेत्र का भ्रमण कर वास्तविक स्थतियों को समझना भी आवश्यक था | कुछ परिवार जो मुवावजा पा चुके हैं वे कैम्पों को छोडकर जा चुके हैं लेकिन वे परिवार जिनका अपने गाँव में रहने का ठौर ठिकाना नही है वे कैम्पों में रहने को मजबूर हैं, वंही प्रशासन द्वारा कैम्पों से ऐसे शर्णार्थियो को जबरिया घर वापस भेजा जा रहा है | यंहा तक कैम्पों को उजाड़ने के लिए बुलडोजर चलाकर शासन प्रशासन अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहता है | विभिन्न राजनैतिक दल कैम्पों का भ्रमण कर अपनी-अपनी तरफ से मदद और राहत के संसाधन उपलब्ध करने के बजाय  केवल एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोपो में ही व्यस्त हैं | कैम्पों में रह रहे अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चे और महिलाएं अपने नागरिक होने के बुनियादी अधिकार राहत, सुरक्षा, संरक्षण, पुनर्वास से वंचित हैं |  

दंगे की खबरें आने के बाद हमने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, अल्पसंख्यक आयोग, मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश शासन, को तत्काल राहत और पुनर्वास की कार्यवाही के लिए से पत्र लिखा, संगठन के कार्यकर्ताओं ने घटना के तुरन्त बाद रिपोर्ट बनाकर शासन प्रशासन को प्रेषित किया | मानवाधिकार जननिगरानी समिति व ह्यूमन राइट ला नेटवर्क संयुक्त तत्वाधान में उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की स्थिति पर एक रिपोर्ट और डाकुमेंटरी जारी कर राजनैतिक पार्टियो और सांसदों के साथ परिचर्चा आयोजित की | इससे पूर्व राज्य सभा टी० वी०  ने कैम्पों की स्थिति पर एक बहस करायी जिसमें डा. लेनिन रघुवंशी ने समिति और वी ओ पी द्वारा किये गये पहल को साझा करते हुए विभिन्न संगठनों से पुनर्वास में मदद की अपील की | इसी दौरान विभिन्न दानदात्री संस्थाएं कैरिटास इण्डिया, कैथोलिक रिलीफ फण्ड, चाइल्ड राइट्स एंड यू (CRY), योरोपियन यूनियन द्वारा आक्सफेम से शिविरों में राहत मदद के लिए आर्थिक सहयोग की घोषणा की है |

मुज्जफरनगर सांप्रदायिक दंगे के राहत शिविरों में रह रहे पीड़ितों से वार्तालाप व टेस्टीमोनी की क्लिपिंग लिंक संलग्न किया गया है|

मुज्जफरनगर सांप्रदायिक दंगे पर राज्य सभा टी० वी०  पर विभिन्न राजनीतिज्ञों, बुद्धिजीवियों के साथ डा0 लेनिन का सामूहिक वार्तालाप एवं इंटरव्यू कार्यक्रम आयोजन का वीडियो लिंक:

23 दिसम्बर को दोपहर के समय मुजफ्फरनगर शाहपुर कैम्प से दंगा पीडिता मैहरुनिशा का मुझे फोन आया, कि हमें कैम्प से जबरजस्ती हटा दिया गया है, हमारे पास रहने का कोई ठिकाना नही है और अब हम कहाँ जायें ? खुदा के वास्ते आप हमारी कुछ मदद कीजिये, हमें आपके मदद की जरूरत है | मैहरुनिशा रो-रोकर मदद की गुहार लगा रही थी | वह बार बार कह रही थी की इतनी ठंढ में मैं कंहा जाऊ ? इस समय मैं इसी गावं के गोकुलपुर में एक मकान के बाहर बरामदे में अपने छोटे-छोटे बच्चों और सास के साथ हूँ | मेरे जैसे कई परिवारों को मदद की जरूरत है जिनका कोई ठिकाना नही है | मदरसे वालों ने हमारा टेंट अचानक ही उजाड़ दिया, हम गुहार लगाते रहे उन्होंने हमारी एक नही सुनी | हमने इस घटना की सूचना तुरंत ईमेल और पंजीकृत डाक द्रारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय श्री. अखिलेश यादव जी, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, और केंद्र सरकार को दिया और उनसे अविलम्ब इन दंगा पीडितो की सहायता के लिए हस्तक्षेप की अपील की  |

हमारी चार सदस्यी टीम जिसमें डा.लेनिन रघुवंशी (निदेशक, मानवाधिकार जननिगरानी समिति), मेरठ के सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता मेजर डा. हिमांशु सिंह, मानवाधिकार कार्यकर्ता मोहम्मद ताज और मैं स्वयं श्रुति नागवंशी (संयोजिका वायस ऑफ़ पीपुल उत्तर प्रदेश, 21 दिसम्बर 2013 को शाहपुर गाँव के इस्लामिया मदरसे के खुले आसमान के नीचे अस्थाई रूप से बनाये गये कैम्प में मुजफ्फरनगर के दंगा पीड़ित परिवारों से मिलने पहुचे | इनमें से कई परिवार कहीं जा चुके थे | जो रह गये, वे मुख्यतः दिहाड़ी, मजदूर ईट भट्ठा मजदूर रह गये थे | जिन्हें 23 दिसम्बर को जबरिया उजाड़ दिया गया और कहा गया कि आप अपने घर लौट जायें | सवाल यह है यह मजदूर कहाँ जाये, जिन गाँवो से इन परिवारों ने भागकर अपनी जान बचायी, वहाँ पर वे दहशत के कारण जाना नही चाहते थे | वहाँ उनके रहने का भी कोई ठिकाना नही रहा, जो कुछ था वह अराजक तत्वो द्रारा तहस-नहस कर दिया गया | लोगों ने बताया कि हमें सरकारी गाड़ी में सर्वे कराने हमारे गाँव ले जाया गया था जब हमने अपने घरों की हालत देखी तो कुछ के घरों के छत भी उतार लिए गये हैं, उन्होंने कहाकि हमारा घर अब घर नही रहा | हम वहाँ जाकर क्या करेंगे, जहाँ जान पर बन आयी हो |

 एक पीड़ित ने स्वव्यथा कथा बताते हुए दर्द भरे आवाज में कहाकि, 7 सितम्बर को मन्दौर की उस पंचायत ने हमारी जिन्दगी बदल दी, इसके पहले हम अपने गाँव में कई पुश्तों रह रहे थे, हम ठहरे मजदूर हमें जो कोई मजदूरी के लिए बोलता या काम देता हम वही करके अपनी जिन्दगी गुजार रहे थे | लेकिन पंचायत में क्या हुआ ? उसके बाद ही जाटो और मुसलमानों में झगड़ा हो गया, जिसमें दो जाट मारे गये जिनकी लाशें गावं में आने के बाद कोहराम मच गया जाटो का समूह हमें अपने घरों से भगाने पर आमादा हो गये | अगर हम जैसे तैसे भाग कर अपनी जान बचाते तो मार दिए जाते | वे लोग जो हमारे साथ इतने सालों से प्रेम से रहते आये थे| वही हमें जान से मारने व काट डालने की धमकी दे रहे थे | उनकी आँखों में आग उबल रहा था और हाथों में लाठी डंडे, चापड़ या जो कुछ हथियार या औजार मिला वही लिए थे | हम कुछ समझ ही नही पा रहे थे कि क्या और क्यों हो रहा है | बस हर कोई अपना अपने परिवार की जान किसी तरह बचाने के लिए भाग रहा था | जिसका मुहँ जिस दिशा में उसी तरफ भाग रहा था | हमने कुछ देर और की होती तो हमारी लाशें मिलतीं वहाँ | हमें तो हर तरह से दर्द झेलना था हमारे बच्चे हमारे सामने मारे जाते तो भी हम तडपते और हम मारे जाते, तो भी अपनी जान खोने की तडप होती |

शाहपुरा इस्लामिया मदरसे के इस कैम्प में दंगा प्रभावित अलग-अलग गावों सिसोली, हडौली, काकडे, सोरम, गोइला आदि के तीन सौ परिवार रह रहे थे | अब भी वंहा बयालिस परिवार टेंटो में थे, जो 23 दिसम्बर को खदेड़ दिए गये | इन परिवारों में पांच गर्भवती महिलाये - अफसाना उम्र 19 W/o वाजिद , 2. परवीन उम्र 30 W/o असलम, 3. शमसीदा उम्र 30 W/o आस मोहम्मद, 4. संजीदा उम्र 26 W/o महबूब, 5. मोमिना उम्र 30 W/o दिलशाद थीं जिन्हें : से सात माह का गर्भ था |
काकडे गाँव की शहजाना (उम्र 30 पत्नी कामिल) जो ईट भट्ठा मजदूर है वह जिस दिन गाँव से अपनी और अपने परिवार की जान बचाते हुए भागकर कैम्प में आयी | उसी दिन उसे लडकी पैदा हुई, ऐसे में सास ने ही प्रसव कराया | आठ दिन बाद बच्ची निमोनिया से पीड़ित होकर वह गुजर गयी | दवा ईलाज के लिये अपने पास से हो सका किया, लेकिन बच्ची नही बची |  शबाना (उम्र 20 पत्नी नफ़ीस) को कैम्प में आने के दो महीने बाद लडकी पैदा हुई, वह भी निमोनिया से पीड़ित होकर एक हफ्ते बाद गुजर गयी | परवीन (उम्र 30 पत्नी असलम) ने बताया कि, हम कलेजे पर पत्थर रखकर कैम्प में रह रहे हैं | जब हम किसी जरूरत का सामान लेने के लिए आसपास के दुकानों में जाते हैं तो लोग बाग हमें देखकर बोलियां बोलते हैं, की ये लोग कैम्प में कम्बल और राहत के सामानों के लालच में पड़े हैं इनकी तो मौज है हम सुनकर भी अनसुना कर देते हैं | यहाँ हम इनकी शरण में हैं क्या कहें, खुदा किसी को ऐसे दिन ना दिखाए | रात में हमारे चूल्हे में कुत्ते के बच्चे आकर सो जाते हैं और सुबह उसी चूल्हे में हम खाना पकाते है हमारा ईमान भी खराब हो रहा है लेकिन खुदा सब देख रहा है वह हमें माफ़ करेंगें |  

हडौली गाँव की मैहरुनिशा ने हमें बताया की दंगे में मेरे पति सत्तार लापता थे मैं मेरी सत्तर वर्षीय बूढी सास शरीफन रह रहकर बेचैन हो जाते कि उनका क्या हाल होगा ? कहाँ होंगे ? सात दिन बाद खतौली में उनका पता चला जब उनकी कहानी सुनकर हमारे पाँव तले जमीन खिसक गयी | जब शाम को मेरे पति जब फेरी के कपड़े बेचकर घर रहे थे तो उन्हें तीन जाटो ने उन्हें मोटरसाईकिल से दौड़ा लिया था, वे किसी तरह गिरते पड़ते अपनी जान बचाने के लिए भाग रहे थे | लेकिन डाक्टर साहब के दुकान के पास उन जाटो ने मेरे पति को घेर लिया और उन्हें गिराकर उनकी गर्दन पर हथियार से वार करने ही वाले थे कि डाक्टर साहब ने उन्हें रोकने की कोशिश की वे मानने को तैयार नही थे | उन्होंने मारने का कारण भी पूछा, जवाब में उन्होंने कहाकि बस ऐसे ही इसे मारना है | उनके बीच बचाव के बीच ही मेरे पति जान बचाकर भाग निकले | वे डाक्टर साहब भी जाट थे, लेकिन उनकी वजह से ही मेरे पति की जान बच गयी | यदि वे होते तो शायद मेरे पति मार दिए जाते | हम उनके लाख-लाख शुक्रगुजार हैं कि उन्होंने उन तीन जाटो को रोका जो मेरे पति को मरना चाहते थे | दहशत से उनकी तबियत बहुत खराब हो गयी थी | अपने नाक की सोने की लौंग और कान का कुंडल बेचकर बहुत दिन ईलाज कराया | अभी भी वे बहुत डरे सहमे हैं, तबियत हमेशा खराब ही रहती है | इसी से उन्हें मेरी बहन ने अपने घर में शरण दिया है | मैं अपनी सास और बच्चों के साथ कैम्प में हूँ, आखिर रिश्तेदारों पर बोझ तो नही बन सकते हैं |

 सिसौली गाँव की छोटी (उम्र 28 पत्नी इदरीश) जिसके तीन माह का बच्ची अक्शा का जन्म यहीं कैम्प में हुआ, दंगे के समय उसका भाई यासीन सिसौली में ही था| उसे तलवार से चोट गयी थी, जिसका ईलाज शाहपुर में ही कराया | उस समय ईलाज की कोई व्यवस्था नही थी, इस समय वह अपने घर चला गया है उसे कोई मुवावजा भी नही मिला | खातून (उम्र 35 पत्नी नूरहसन) जिसका ढाई महीने का बच्चा है कई ऐसे छोटे बच्चे हैं जिनके देखभाल और ईलाज की कोई सुविधा नही मिली | चौंकाने वाला तथ्य यह सामने आया कि सोरम, सिसौली, हडौली, और गोइला गाँवो के दस पन्द्रह घरों के जो दंगे पीड़ित शाहपुर कैम्पों में रह रहे थे, उन्हें प्रशासन ने दंगा पीड़ित नही माना | सिसौली और सोरम जहाँ अपने खाप पंचायतो के लिए जाना जाता है, विदित है कि वंही सिसौली प्रसिद्ध जाट किसान नेता का गाँव है | महिलाओं ने बताया कि सोरम में उनके कपड़े उतारे लिए गये, उन पर गोलिया चली, तेजाब फेंका गया, किसी तरह से वे जान बचाकर भागे, पुलिस ने भी उनकी पिटाई की | अभी एक दिन पहले ही सोरम में मुस्लिम बच्चों की स्कूल से लौटते समय पिटाई की गयी | हडौली में मस्जिद फूंक दी गयी, वहीं दुल्हेरा के हकिमु की बेटी सलेहा अभी भी गायब है |    

 हमने देखाकि बारिश से कैम्प की मिट्टी गीली हो गयी थी कई जगह पानी भी इक्टठा था, कुछ टेंटो की जमीन में बिछी पुआल भी पूरी तरह गीली थी | महिलाए और बच्चे हमें अपने टेंटो में ले जाकर दुर्दशा दिखाकर अपना दर्द हमें बता रहे थे | उन्होंने बताया की ठंढ में हम रात भर जागकर किसी तरह बिताते हैं, ठंड के मारे नींद नही आती | ठंड में हमारे बच्चे ज्यादा बीमार हो जा रहे हैं | दंगे के कुछ दिन बाद एकाध बार दवा मिली डाक्टर आये, फिर कोई नही आया | हमारे तन पर जो कुछ था, उसे बेचकर हम अपने बच्चों का ईलाज कराते हैं | अभी भी कई छोटे बच्चे, नवजात बच्चे और उनकी माँऐ, गर्भवती महिलाए जिन्हें आम तौर पर खास देखभाल की जरूरत होती है वे इस हाड़ कपा देने वाली ठंड में खुले कैम्पों में जरूरी सुविधाओं के अभावों में रहने को मजबूर हैं |
यूरोपियन यूनियन ने एक लाख पचास हजार यूरो आक्सफेम संस्था के द्रारा मुजफ्फरनगर और शामली के दंगा  पीडितो की सहायता के लिए देने की घोषणा की है | वहीं क्राई संस्था ने बच्चों की मौतों की खबरों को संजीदगी से लेकर सीधे मदद करने का निर्णय लिया है | मुजफ्फरनगर और शामली के कैम्पों में, (9804) नौ हजार आठ सौ चार बच्चों की गिनती की गयी थी, जिनमें कई बच्चे मौत का शिकार हो चुके हैं | अभी भी कई बच्चे और गर्भवती महिलाए थीं, जो उचित देखभाल और चिकित्सीय सुविधाओ के आभाव में जूझ रहे हैं और जिन्हें मदद की जरूरत है | पिछले ही वर्ष दिसम्बर माह में निर्भया के साथ बलात्कार की घटना पर जहाँ देश भर में विरोध और भर्त्सना की गयी | वहीं मुजफ्फरनगर के दंगा पीड़ित महिलाओ के साथ 5 नवम्बर 2013 तक 13 बलात्कार की घटनाओं पर नागर व सभ्य समाज की आश्चर्यजनक चुप्पी पुरे समाज पर सवालिया निशान लगाती है |

मुजफ्फरनगर की साम्प्रदायिक हिंसा कथित छेडछाड की घटना के बाद हत्या कर देने और बाद में छेड़छाड़ की बात आने की कहानी को   एक तरफ हिन्दू फांसीवादी ताकतों के साथ मुस्लिम साम्प्रदायिक ताकतों को भी रेखांकित करती है | सुप्रसिद्ध अमेरिकन चिंतक एडमन बर्के का यह कथन इस बात को सही सिद्ध करता है किइस देश में धर्म का कानून, जमीन का कानून, इज्जत का कानून सब मिलाकर एक साथ एक पुरुष के कथित आध्यात्मिक कानून से जुड़ा है जो उसकी जाति है |

चूँकि वर्तमान में शासन के निर्देश पर प्रशासन द्वारा जबरिया कैम्पों में रह रहे दंगा पीड़ितों से कैम्प खाली कराया जा रहा है,  जिनका घर-बार उजड़ चुका है और अपने गाँव में भी उनकी कोई पुश्तैनी सम्पत्ति,  ठौर ठिकाना साथ ही एक नागरिक के हैसियत की बुनियादी सुविधाए और कल्याणकारी योजनाएं से (राशनकार्ड, मनरेगा जाबकार्ड आदि) सम्बधता नही है, ऐसे परिवार दरदर की ठोकर खाने को मजबूर हैं | दंगा प्रभावित गांवो से दंगे के कारण विस्थापित परिवारों की पहचान कर उनकी खाद्य सुरक्षा, आजीविका, आवास, बच्चों और महिलाओं के लिए बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं, बच्चों की प्राथमिक और पूर्व प्राथमिक शिक्षा के लिए विशेष कार्यक्रम चलाये जाने की जरूरत है |

 | मनोवैज्ञानिक इस बात से सहमत होंगे कि इन परिवारों को लगातार चिकित्सीय देखभाल की भी आवश्यकता है क्योंकि मानव मन मष्तिक पर किसी भी हिंसक घटना का बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ता है, उनके अंदर विभिन्न प्रकार की शारीरिक-मानसिक समस्याए पैदा हो जाते हैं जिससे उनकी कार्यक्षमता और दक्षता, निर्णय लेने की क्षमता, आत्मविश्वास प्रभावित होता है | साथ ही ठंड के मौसम में इस क्षेत्र का तापमान काफी नीचे होता है जिसका प्रभाव बच्चों, गर्भवती महिलाओं और प्रसूता महिलाओं  पर पड़ता है इन्हे विशेष  चिकित्सीय देखभाल की जरूरत  है |    

ऐसे में जरूरत है कि विभिन्न राजनैतिक पार्टिया अपनी - अपनी रोटियाँ सेंकने  और जनता को गुमराह करने एक दूसरे पर दंगे की जिम्मेदारी डालने के बजाय दंगा पीड़ितों के तन से गहरे मन के घावों को भरने के प्रयास में मिलकर काम करें | पीड़ितों के इज्जत, आशा, मानवीय गरिमा को ध्यान में रखते हुए अविलम्ब बिना किसी भेदभाव के नागरिक अधिकार संरक्षित करते हुए पुनर्वासित किये जाने के लिए लम्बी अवधि तक कार्यक्रम चलाना होगा, जिसमें मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक सम्बल के पहल को महत्व देना होगा | जरूरत है की दंगा प्रभावित ग्राम पंचायतें दंगे के शिकार पीडितो से क्षमा याचना करते हुए (Reconciliation) उन्हें अपने निवास ग्रामों में वापस लाकर पुनर्वासित करने का कार्य करें अन्यथा शासन द्वारा इन ग्राम पंचायतो का विकास फण्ड रोक दिया जाय |
सौजन्य से -  श्रुति नागवंशी (संयोजिका वायस ऑफ़ पीपुल उत्तर प्रदेश)     

                                  
निम्न पते पर अपना पत्र भेजें या ईमेल करें :

1.The Hon'ble President of India,
Rashtrapati Bhawan,
New Delhi – 110001,
India.

2.  The   Hon'ble Vice President of India,
Vice president House,
6, Maulana Azad Road,
New Delhi – 110011,
India.
Email – vpindia@nic.in

3. The Prime Minister
Prime minister of India,
Prime minister office,
New Delhi - 110101 - INDIA

4The Chairperson
 National Human Rights Commission
Manav Adhikar Bhawan,
Block – C, G.P.O Complex, INA
New Delhi- 110023, INDIA.
Fax :- 011-2338 486


5. The Registrar
Supreme Court of India,
Tilak Marg, New Delhi - 110001 - INDIA.
Fax No. - + 91 11 2338150823381584.

6. Mr. Akhilesh Singh Yadav,
Chief Minister
Chief Minister's Secretariat
Lucknow
Uttar Pradesh - INDIA
Fax: + 91 522 223 0002 / 223 9234
E-mail: csup@up.nic.in

7. The Director General of Police
1-B.N., Lahari Marg / Tilak Marg,
Lucknow - 226001 - Uttar Pradesh - INDIA
Fax No. - +91 522 2206120, 2206174
E-mail - police@up.nic.in

8. The District Magistrate,
Muzaffarnagar - Uttar Pradesh - 251001.
India.
Fax No. - +91 05452 260201, 240240
E-mail -  dmmuz@nic.in

9. The Superintendents of Police
Muzaffarnagar –251001
 Uttar Pradesh - India.

Urgent Appeal Desk (pvchr.india@gmail.com )
Peoples' Vigilance Committee on Human Rights (PVCHR)

मानवाधिकार जन निगरानी समिति,
सा 4/2., दौलतपुर, वाराणसी 221002.
उत्तर प्रदेश भारत !
मोबाईल 0: +91  9935599333.                                




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