Saturday, January 29, 2011

मुसहर जीवन से एक साक्षात्‍कार


मुसहर जीवन से एक साक्षात्‍कार

डॉ लेनिन रघुवंशी

उत्तर प्रदेश के वाराणसी जनपद में बड़ागाँव ब्लॉक के मुसहर परिवारों की कहानी, समाज को उच्च शिखर पर पहुँचा रहा है, क्या आपको लगता है? आइये ज़रा महसूसने की कोशिश करें …

बड़ागाँव नाम से ही लगता है कि कितना विकसित होगा और कितना सुशोभित होगा यहाँ के नागरिकों का जीवन। मगर ये वास्तविकता से परे है। आज भी मुसहरों की स्थिति दयनीय है और उपेक्षाओं की मार से धरती पर कीड़े-मकोड़ों की तरह जीवन-जीने को मजबूर हैं। ऐसा लगता है कि जुल्मों-सितम को सहते हुए इसे नियति समझ बैठे हों। दिन की शुरुआत होती है, लेकिन यह पता नही रहता कि शाम तक बच्चों के लिए दो जुन की रोटी का जुगाड़ हो पायेगा कि नही।  उस स्थिति में बच्चों के लिए शिक्षा तो दूर एक वक्त का भोजन मिल जाए यही सौभाग्य मानते हैं। प्राथमिक विद्यालय व आँगनबाड़ी की स्थिति आज भी मनुवादी सोच को चरितार्थ कर रही है।

एक तरफ राज दावा कर रही है कि जल्द ही हमारे प्रदेश में गाँव-गाँव तक चिकित्सा वाहन की सुविधा हर एक दलित बस्ती में पहुँचेगी, मगर वास्तविकता क्या है? अस्पताल के बाहर गर्भवती महिला तड़पते हुए अपने बच्चों को खो दे रही है, पीड़ा को दूर किये बिना उसके साथ छूआछूत का बर्ताव किया जा रहा है। क्या उनका इस जाति में जन्म लेना दुर्भाग्य है कि वो मुसहर जाति में पैदा हुई है। अगर कभी-कभार ए0एन0एम0 (सरकारी स्वास्थ्य सेविका) डिलिवेरी करवा देती है तो उस महिला के साथ पशुओं से भी ज्यादा अभद्र व्यवहार होता है और महिनों की कमाई की जमा पूँजी उल्टे ऐंठ ली जाती है।

ग़रीबी व भूखमरी मानों सदियों से इनको दरिद्रतापूर्ण जीवन जीने के लिये बेबस कर दिया हो। उत्तर प्रदेश कुपोषण और भूखमरी के शिकार बच्चों की स्थिति में अव्वल है जिसमें मुसहर जाति के बच्चे ज्यादा पाये गये है।

यातना और संगठित हिंसा का शिकार यह जाति किसी भी समय उच्च जातियों और पुलिस द्वारा उत्पीड़ित होते है, इनके लिए न्याय पाना तो दूर ये गुहार भी नहीं कर सकते, ऐसी यहाँ सामाजिक और प्रशासनिक व्यवस्था कायम है।

पुलिस द्वारा मुसहरों से घृणित कार्य करवाना मानों अब आदत सा बन गया है कि रात्रि-अर्द्धरात्रि, जब चाहे घर में घुसकर उठा लें और सड़ी गली लावारिश लाश फेंकवाना, थाने और जेल में आज भी शौचालय साफ करवाना व गंदी-गंदी वस्तुओं को जबरन उठावाना इत्यादि शामिल है।

उच्च जातियों द्वारा अपने यहां बेगारी करवाकर मजुदूरी न देना और समुदाय के महिलाओं के साथ छेड़छाड़ व असामाजिक दुर्व्‍यवहार आम बात है। अगर कभी इस समुदाय के लोग साफ़ कपड़े पहनकर रिश्‍तेदारी के लिये भी घर से निकलें और इन पर दबंग जातियों का नजर पड़ जाए तब जान-बूझकर जबरन काम करवाया जाता है ताकि इनके कपड़े मैले हो जाएं। लेकिन चुनाव की गर्माहट है तो मुसहर देवता, नहीं तो धोबी का कुत्ता बना रहता है। यही इनकी नियति है।

धर्म व जाति को प्रधानता देना लोगों द्वारा ढकोसला व मूर्खतापूर्ण असामन्जस्य फैलाने वाली समस्या अपने देश के लिए बतायी जा रही है। मगर वास्तव में ये एक व्यवसाय सा प्रतीत होता है जिससे कभी दबंगों, कभी पुलिवालों और कभी वकीलों का ही जेब भरता नजर आ रहा है।

हमारे देश में सदियों से चला आ रहा है कि स्त्री पूज्‍य है उसकी पूजा-अर्चना करनी चाहिये। कुछ समय पहले ही इस वक्तव्य को धूमिल होते देख हमारे संविधानदाता अनेक कानून व धारायें बनाकर चले गये। आज भी प्रत्येक शासनकाल में स्त्रियों की स्थिति में सुधार हेतु कुछ न कुछ योजनायें व आरक्षण की सुविधा महिलाओं को दी जा रही हैं। लेकिन क्या वो क्रियान्वित हो रहा है? या फिर केवल भाषणबाज़ी की संस्कृति बनकर रह  जा रहा है। इसको भी हम यहाँ इस विशालकाय गाँव में अवलोकित होते हुए देख सकते हैं। पुरुष-महिला को अपनी जागीर समझता हैं। पंचायतीराज को ही ले सकते हैं कि जिसमें महिला प्रधान होने पर भी सारे कर्ताधर्ता पुरुष ही रहते हैं। महिला को ये भी पता नहीं रहता कि उनका दायित्व क्या है और  हमारा निर्वाचन क्यों हुआ हैं। आखिर वो जाने कैसे? जब घर में चकला-बेलन ही चलाना है। जब कभी एकाध बार कोई ग़रीब व वंचित महिला बगावत कर घर के दहलीज़ को पार करती है, तो पुरुषरूपी घड़ियाल उसको अपने क़ब्जे़ में करने के लिए हर तरह के पैतरे अपनाता है। ये ज़रूरी नहीं कि उसका हथियार केवल पुरुषवादी सोच ही काफी है बल्कि वक्त पड़ने पर एक स्त्री के लिए स्त्री का इस्तेमाल कर लेते है। इस व्यवस्था में मुसहर महिलाओं की स्थिति सोची जा सकती हैं। खुले आम अनुसूचित जाति/अनुसूचित जाति अधिनियम व निवारण एक्ट की धज्जियॉ उड़ रही है। अस्पृष्यता उन्मूलन एक लम्बा संघर्ष है। जब हमारे ग्रामीण समाज की गंदी सोच ही दर्शन बन जाये तो हमारा संविधान व कानून मात्र केवल कागज की कठपुतली ही बनकर रह जायेगा। जिसे हम केवल अच्छे दर्शक की तरह देखेगें और एक गंभीर व प्रशंसनीय चित्रकथा की भाँति अपने मस्तिष्‍क के अवचेतन भाग के ऊपर छोड़ देगें। ऐसी स्थिति में इस समुदाय का क्या होगा?

अंततः हम यही कह सकते हैं कि ये केवल बड़ागाँव के मुसहरों की कहानी नहीं है बल्कि आज देश में यह जाति जहां भी है वहाँ ये कुरूतियाँ व्याप्त हैं। क्या अब भी हम यहीं कहेगें कि समाज सर्वोच्च शिखर पर पहुँच रहा है। उत्तर प्रदेश उत्तम प्रदेश बन गया है?

डॉ0 लेनिन रघुवंशी 'मानवाधिकार जन निगरानी समिति' के महासचिव हैं और वंचितों के अधिकारों पर इनके कामों के लिये इन्‍हें 'वाइमर ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', जर्मनी एवं 'ग्वांजू ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', दक्षिण कोरिया से नवाज़ा गया है. लेनिन सरोकार के लिए मानवाधिकार रिपोर्टिंग करेंगे, ऐसा उन्‍होंने वायदा किया है. उनसे pvchr.india@gmail.com पर संपर्क साधा जा सकता है.

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" मुसहर जीवन से एक साक्षात्‍कार " को 2 प्रतिक्रियाएँ

  1. लेनिनजी इतनी अच्‍छी रिपोर्ट साझा करने के लिए आपका आभार. सरोकार के मार्फत अभी दो दिन पहले ही बौद्ध विहार स्‍थापना की एक अनूठी कोशिश की जानकारी मिली थी और फिर मुसहर समुदाय के बारे में आज जो जानकारी मिली है, सचमूच वह रोंगटे खड़ देने वाला है. अगर यही आजादी है और यही नारिकता तो हम क्‍या करेंगे इनमें से कुछ भी लेकर. यह एक गंभीर सवाल है हमारे नीधि निर्धारकों और नियंताओं के लिए कि देश में ऐसे लोगों के रहते, इतने दमन उत्‍पीड़न के रहते हम किस तरह के विकास की बात करते हैं. सुरक्षा परिषद में भारत को स्‍थायी जगह मिल भी गया तो इन मुसहरों के जीवन पर क्‍या असर पडेगा. हम तो शहर के मध्‍य वर्ग में शामिल होने के लिए बेचैन हुए जा रहे हैं.
    लेनिनजी से गुजारिश है कि वे ऐसी रिपोर्ट और खबरें ज्‍यादा से ज्‍यादा लोगों के सामने लाएं. एक बार फिर लेकिनजी और सरोकार का आभार.

  2. ajay prakash says:

    acchi rapat hai. ummid hai ki sarokar media men ek behtar vikalp banega.

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